Get here CBSE Class 10 Sanskrit Chapter 11 Hindi translation.
CBSE Class 10 Sanskrit Chapter 11 Hindi translation.
1. चाणक्यः – वत्स! मणिकारश्रेष्ठिनं चन्दनदासमिदानीं द्रष्टुमिच्छामि।
शिष्यः – तथेति (निष्क्रम्य चन्दनदासेन सह प्रविश्य) इतः इतः श्रेष्ठिन्! (उभौ परिक्रामतः)
शिष्यः – (उपसृत्य) उपाध्याय! अयं श्रेष्ठी चन्दनदासः।
चन्दनदासः – जयत्वार्यः
चाणक्यः – श्रेष्ठिन्! स्वागतं ते। अपि प्रचीयन्ते संव्यवहाराणां वृद्धिलाभा:?
चन्दनदासः – (आत्मगतम्) अत्यादरः शङ्कनीयः। (प्रकाशम्) अथ किम्। आर्यस्य प्रसादेन अखण्डिता में वाणिज्या।
चाणक्यः – भो श्रेष्ठिन्! प्रीताभ्यः प्रकृतिभ्यः प्रतिप्रियमिच्छन्ति राजानः।
चन्दनदासः – आज्ञापयतु आर्यः, किं कियत् च अस्मज्जनादिष्यते इति।
हिंदी अनुवाद
चाणक्य – बेटा (प्रिय)। जौहरी सेठ चन्दनदास को इस समय देखना (मिलना) चाहता हूँ।
शिष्य – ठीक है (वैसा ही हो) (निकलकर चन्दनदास के साथ प्रवेश करके) इधर-से-इधर से श्रेष्ठी (सेठ जी)! (दोनों घूमत है)
शिष्य – (पास जाकर) आचार्य जी! यह सेठ चन्दनदास है। चन्दनदास – आर्य की विजय हो
चाणक्य – सेठ! तुम्हारा स्वागत है। क्या व्यवहारों का (कारोबार में) लाभ बढ़ रहे हैं?
चन्दनदास – (मन-ही-मन में) अधिक सम्मान शंका के योग्य है। (प्रकट रूप से) और क्या। आर्य की कृपा से मेरा व्यापार अखण्डित है।
चाणक्य – अरे सेठ! प्रसन्न स्वभाव वालों (लोगों) से राजा लोग उपकार के बदले किए गए उपकार को चाहते हैं।
चन्दनदास – आर्य आज्ञा दें, क्या और कितना इस व्यक्ति से आशा करते हैं।
2. चाणक्यः – भो श्रेष्ठिन्! चन्द्रगुप्तराज्यमिदं न नन्दराज्यम्। नन्दस्यैव अर्थसम्बन्धः प्रीतिमुत्पादयति। चन्द्रगुप्तस्य
तु भवतामपरिक्लेश एव। चन्दनदासः – (सहर्षम्) आर्य! अनुगृहीतोऽस्मि।
चाणक्यः – भो श्रेष्ठिन्! स चापरिक्लेशः कथमाविर्भवति इति ननु भवता प्रष्टव्यः स्मः।
चन्दनदासः – आज्ञापयतु आर्यः। चाणक्यः – राजनि अविरुद्धवृत्तिर्भव।
चन्दनदासः – आर्य! कः पुनरधन्यो राज्ञो विरुद्ध इति आर्येणावगम्यते?
चाणक्यः – भवानेव तावत् प्रथमम्।
चन्दनदासः – (कर्णी पिधाय) शान्तं पापम्, शान्तं पापम्। कीदृशस्तुणानामग्निना सह विरोधः?
हिंदी अनुवाद
चाणक्य – अरे सेठ! यह चन्द्रगुप्त का राज्य है नन्द का राज्य नहीं। नन्द का राज्य ही धन से प्रेम रखता है।
चन्द्रगुप्त तो आपके सुख से ही (प्रेम रखता है)। चन्दनदास – (खुशी के साथ) आर्य! आभारी हूँ।
चाणक्य – हे सेठ! और वह दुःख का अभाव कैसे उत्पन्न होता है यही आपसे पूछने योग्य है। चन्दनदास – आर्य आज्ञा दीजिए।
चाणक्य — राजा में (के लिए) विरुद्ध व्यवहार वाला न होओ (बनो)। चन्दनदास – आर्य! फिर कौन अभागा राजा के विरुद्ध है ऐसा आर्य समझते हैं।
चाणक्य – सबसे पहले तो आप ही। चन्दनदास – (कानों को छूकर/बन्द करके) क्षमा कीजिए, क्षमा कीजिए। सूखी घासों का आग के साथ कैसा विरोध?
3. चाणक्यः – अयमीदृशो विरोधः यत् त्वमद्यापि राजापथ्यकारिणोऽमात्यराक्षसस्य गृहजनं स्वगृहे रक्षसि।
चन्दनदासः – आर्य! अलीकमेतत्। केनाप्यनार्येण आर्याय निवेदितम्।
चाणक्यः – भो श्रेष्ठिन्! अलमाशङ्कया। भीताः पूर्वराजपुरुषाः पौराणामिच्छतामपि गृहेषु गृहजनं निक्षिप्य देशान्तरं व्रजन्ति। ततस्तत्प्रच्छादनं दोषमुत्पावयति।
चन्दनदासः – एवं नु इवम्। तस्मिन् समये आसीदस्मद्गृहे अमात्यराक्षसस्य गृहजन इति।
चाणक्यः – पूर्वम् ‘अनृतम्’, इदानीम् “आसीत्” इति परस्परविरुद्धे वचने।
चन्दनदासः – आर्य! तस्मिन् समये आसीदस्मद्गृहे अमात्यराक्षसस्य गृहजन इति।
हिंदी अनुवाद
चाणक्य – यह ऐसा विरोध है कि तुम आज भी राजा का बुरा करने वाले अमात्य राक्षस के परिवार को अपने घर में रखते हो।
चन्दनदास – हे आर्य! यह झूठ है। किसी दुष्ट ने आर्य को (गलत) कहा है।
चाणक्य – हे सेठ! आशंका (संदेह) मत करो। डरे हुए भूतपूर्व (पिछले/अपदस्थ) राजपुरुष पुर (नगर) वासियों की इच्छा से भी (उनके) घरों में परिवार जन को रखकर (छोड़कर) दूसरे स्थानों को चले जाते हैं। उससे उन्हें छिपाने का दोष पैदा होता है।
चन्दनदास – निश्चय से ऐसा ही है। उस समय हमारे घर में अमात्य राक्षस का परिवार था।
चाणक्य – पहले ‘झूठ’ अब “था” ये दोनों आपस में विरोधी वचन हैं।
चन्दनदास – आर्य! उस समय हमारे घर में अमात्य राक्षस का परिवार था।