Class 10 Sanskrit Chapter 6 Hindi translation

Class 10 Sanskrit Chapter 6 Hindi translation

पाठ के पद्यांशों का अन्वय, कठिन शब्दार्थ एवं सप्रसंग हिन्दी अनुवाद

(1) Sanskrit class 10 Subhashitani

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।

नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ॥

अन्वय

हि मनुष्याणां शरीरस्थः महान् शत्रुः  आलस्यम्। उद्यमसमः बन्धुः न अस्ति, यं कृत्वा (मनुष्यः) न अवसीदति।

कठिन शब्दार्थ

हि = निश्चित ही (निश्चयेन)। मनुष्याणाम् = मनुष्यों का (मानवानाम्) । शरीरस्थः = शरीर में रहने वाला (देहेस्थितः)। उद्यमसमः = परिश्रम के समान (परिश्रमेण तुल्यः)। बन्धुः = भाई (भ्राता)। कृत्वा = करके (विधाय)। न अवसीदति = दुःखी नहीं होता है (दुःखं न अनुभवति)।

प्रसंग

प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के सुभाषितानि’ शीर्षक पाठ से उद्भुत किया गया है। इस पद्यांश में आलस्य को महान् शत्रु तथा परिश्रम को श्रेष्ठ बन्धु बताते हुए कहा गया है कि

हिन्दी अनुवाद

निश्चित ही मनुष्यों के शरीर में रहने वाला महान् शत्रु आलस्य है। परिश्रम के समान कोई भी बन्धु (हितैषी) नहीं है, जिसको करके मनुष्य कभी दुःखी नहीं होता है।

English translation

Surely the great enemy residing in the human body is laziness. There is no friend (beneficiary) like hard work, by which a man never feels sad.

(2) Class 10 Sanskrit Chapter 6 Hindi translation

गुणी गुणं वेत्ति न वेत्ति निर्गुणो,

बली बलं वेत्ति न वेत्ति निर्बलः।

पिको वसन्तस्य गुणं न वायसः,

करी च सिंहस्य बलं न मूषकः॥

अन्वय

गुणी गुणं वेत्ति, निर्गुणः (गुणं) न वेत्ति, बली बलं वेत्ति, निर्बलः (बलं) न वेत्ति, वसन्तस्य गुणं पिकः (वेत्ति), वायसः न (वेत्ति), सिंहस्य बलं करी (वेत्ति), मूषक: न।

कठिन शब्दार्थ

गुणी = गुणवान् (गुणवान्) । वेत्ति = जानता है (जानाति)। बली = बलवान् (बलवान्)। पिकः = कोयल (कोकिलः)। वायसः = कौआ (काकः)। करी = हाथी (गजः)। मूषकः = चूहा (आखुः)।

प्रसंग

प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के सुभाषितानि’ शीर्षक पाठ से उद्धत किया गया है। इस पद्यांश में अनेक उदाहरणों के द्वारा यह समझाया गया है कि गुणवान् ही दूसरे के गुणों को जानता है, गुणहीन नहीं।

हिन्दी अनुवाद

गुणवान् ही गुण को जानता है, गुणहीन गुण को नहीं जानता है। बलवान् ही बल को जानता है, बलहीन बल को नहीं जानता है। वसन्त ऋतु के गुण को कोयल ही जानती है, कौआ उसे नहीं जानता है। सिंह के बल को हाथी ही जानता है, उसे चूहा नहीं जानता है।

अर्थात्

इस कथन के द्वारा कवि ने यह दर्शाया है कि जिसमें स्वयं में जो गुण है वह दूसरों के भी उस गुण के महत्त्व को जानता है, और जिसमें जो गुण नहीं है वह दूसरों के भी उस गुण को नहीं जान सकता है। हिन्दी में कहावत है-“हीरे की परख जौहरी (सुनार) ही जानता है।”

English translation

Only the virtuous know the virtue, the virtuous do not know the quality. Only the strong know the force, the weak do not know the force. Only the cuckoo knows the quality of the spring season, the crow does not know it. Only the elephant knows the strength of a lion, the mouse does not know it.

Through this statement, the poet has shown that one who has the quality in himself knows the importance of that quality in others, and the one who does not have that quality cannot know that quality of others also. There is a proverb in Hindi – “Only a goldsmith knows the test of a diamond.”

(3) Class 10 Sanskrit Chapter 6 Hindi translation

निमित्तमुद्दिश्य हि यः प्रकुप्यति,

ध्रुवं स तस्यापगमे प्रसीदति।

अकारणद्वेषि मनस्तु यस्य वै,

कथं जनस्तं परितोषयिष्यति॥

अन्वय

यः निमित्तम् उद्दिश्य प्रकुप्यति सः तस्य अपगमे ध्रुवं प्रसीदति, यस्य मनः अकारणद्वेषि (अस्ति) जनः तं कथं परितोषयिष्यति।

कठिन शब्दार्थ

निमित्तम् = कारण को (कारणम्)। प्रकुप्यति = अत्यधिक क्रोध करता है (अतिकोपं करोति)। अपगमे = समाप्त होने पर (समाप्ते)। ध्रुवम् = निश्चित रूप से (निश्चयेन)। प्रसीदति = प्रसन्न होता है (प्रसन्नः भवति)। अकारणद्वेषि = बिना कारण ही द्वेष करने वाला (विना कारणं यः दोषयुक्तं भवति)। परितोषयिष्यति = सन्तुष्ट करेगा (परितोषं दास्यति)।

प्रसंग

प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक शेमुषी-द्वितीयो भागः के सुभाषितानि शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पद्यांश में बिना कारण के क्रोध के दुष्प्रभाव का वर्णन करते हुए कहा गया है कि-

हिन्दी अनुवाद

जो किसी कारण को उद्देश्य में करके अत्यधिक क्रोध करता है वह उस कारण के समाप्त हो जाने पर निश्चित रूप से प्रसन्न होता है। किन्तु जिसका मन बिना कारण ही द्वेष करने वाला है उस मन को व्यक्ति कैसे सन्तुष्ट करेगा, अर्थात् ऐसे मन को कभी भी सन्तुष्ट नहीं किया जा सकता है।

English translation

One who is very angry by doing some cause as a motive, he is certainly happy when that cause ends. But how can a person satisfy the mind whose mind is hating without any reason, that is, such a mind can never be satisfied.

(4) Class 10 Sanskrit Chapter 6 Hindi translation

उदीरितोऽर्थः पशुनापि गृह्यते,

हयाश्च नागाश्च वहन्ति बोधिताः।

अनुक्तमप्यूहति पण्डितो जनः,

परेङ्गितज्ञानफला हि बुद्धयः॥

अन्वय

पशुना अपि उदीरितः अर्थः गृह्यते, हयाः नागाः च बोधिताः (भारं) वहन्ति, पण्डितः जनः अनुक्तम् अपि ऊहति, बुद्धयः परेगितज्ञानफलाः भवन्ति।

कठिन शब्दार्थ

उदीरितः = कहा हुआ (कथितः) । गृह्यते = प्राप्त किया जाता है (प्राप्यते) । हयाः = घोड़े (अश्वाः) । नागाः = हाथी (गजाः)। बोधिताः = कहे जाने पर (उपदिष्टाः)। वहन्ति = ढोते हैं (वहनं कुर्वन्ति)। पण्डितः = विद्वान् (प्राज्ञः) । अनुक्तम् = नहीं कहे गये की (अनुपदिष्टम्)। ऊहति = समझ लेता है (निारयति)। बुद्धयः = बुद्धिमान् लोग (बुद्धिमन्तः)। परेङ्गितज्ञानफला: = दूसरों के संकेतजन्य ज्ञान रूपी फल वाले (अन्यैः कृतैः सङ्केतः लब्धज्ञानाः)।

प्रसंग

प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक शेमुषी-द्वितीयो भागः के ‘Subhashitani शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पद्यांश में बुद्धिमान् के वैशिष्ट्य का उदाहरण सहित वर्णन करते हुए कहा गया है कि-

हिन्दी अनुवाद

पशु के द्वारा भी कहे हुए अर्थ को ग्रहण कर लिया जाता है, घोड़े और हाथी समझाने पर भार का वहन कर लेते हैं। किन्तु विद्वान् व्यक्ति बिना कहे हुए को भी समझ लेता है। बुद्धिमान् लोग दूसरों के संकेतजन्य ज्ञान रूपी फल वाले होते हैं। अर्थात् बुद्धिमान् दूसरों के संकेतमात्र से ही उसके भावों को समझ लेते हैं, उनसे कहने की आवश्यकता नहीं होती है।

          भाव यह है कि कहने पर तो पशु भी दूसरों की बात समझ लेते हैं किन्तु बिना कहे हुए संकेतमात्र से समझने वाले ही बुद्धिमान् व्यक्ति होते हैं।

English translation

Even by the animal, the said meaning is adopted, the horse and the elephant bear the burden on persuasion. But a learned person understands even without saying. Wise people are the fruit of the knowledge of others. That is, the wise understand his feelings from the mere hints of others, there is no need to tell them.

          The meaning is that even animals understand the point of others when they say it, but only those who understand without saying a hint are intelligent people.

(5) Class 10 Sanskrit Chapter 6 Hindi translation

क्रोधो हि शत्रुः प्रथमो नराणां,

देहस्थितो देहविनाशनाय।

यथास्थितः काष्ठगतो हि वह्निः,

स एव वह्निर्दहते शरीरम् ॥

अन्वय

नराणां देहविनाशनाय प्रथमः शत्रु: देहस्थितः क्रोधः । यथा काष्ठगतः स्थितः वह्निः काष्ठम् एव दहते (तथैव शरीरस्थः क्रोधः) शरीरं दहते।

कठिन शब्दार्थ

नराणाम् = मनुष्यों के (मनुष्याणाम)। देहविनाशनाय = शरीर का विनाश करने के लिए (शरीस्य विनाशाय)। शत्रुः = शत्रु (रिपुः) । देहस्थितः = शरीर में स्थित (शरीरे स्थितः)। काष्ठगतः = लकड़ी में रहने वाला (इन्धने स्थितः) । वह्निः = आग (अग्निः) । दहते = जलाता है (ज्वलयति)।

प्रसंग

प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक शेमषी-द्वितीयो भागः के सुभाषितानि शीर्षक पाठ से उद्धत किया गया है। इस पद्यांश में क्रोध को विनाशशील शत्रु बतलाते हुए कहा गया है कि-

हिन्दी अनुवाद

मनुष्यों के शरीर का विनाश करने के लिए पहला शत्रु शरीर में ही स्थित क्रोध है। जिस प्रकार काष्ठ के अन्दर स्थित अग्नि काष्ठ को ही जला देती है, उसी प्रकार शरीर में स्थित क्रोध शरीर को ही जला देता है।

             कवि ने इस कथन के द्वारा क्रोध को मनुष्यों का विनाश करने वाला परम शत्रु बतलाते हुए क्रोध का त्याग करने की प्रेरणा दी है।

English translation

The first enemy to destroy the human body is anger within the body itself. Just as the fire inside the wood burns the wood itself, similarly the anger in the body burns the body itself.

              Through this statement, the poet has given the inspiration to give up anger, describing anger as the ultimate enemy of the destruction of human beings.

(6) Class 10 Sanskrit Chapter 6 Hindi translation

मृगा मृगैः सङ्गमनुव्रजन्ति,

गावश्च गोभिः तुरगास्तुरङ्गैः ।

मूर्खाश्च मूर्खोः सुधियः सुधीभिः,

समान-शील-व्यसनेषु सख्यम्॥

अन्वय

मृगाः मृगैः सङ्गम्, गावश्च गोभिः सङ्गम, तुरगाः तुरङ्गैः सङ्गम्, मूर्खाः मूर्खोः सङ्गम्, सुधियः सुधीभिः सङ्गम् अनुव्रजन्ति । सख्यम् समानशीलव्यसनेषु (भवति)।

कठिन शब्दार्थ

मृगाः = हिरण (हरिणाः) । सङ्गम् = साथ (समम्)। गावः = गायें (धेनवः) । गोभिः सङ्गम् = गायों के साथ (धेनुभिः सह)। तुरगाः = घोड़े (अश्वाः) । सुधियः = विद्वान् (विद्वांसः)। अनुव्रजन्ति = पीछे-पीछे जाते हैं, अनुसरण करते हैं (अनुसरन्ति)। सख्यम् = मित्रता (मैत्री)। व्यसनेषु = आदत, स्वभाव में (स्वभावेषु)।

प्रसंग

प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक शेमुषी-द्वितीयो भागः के सुभाषितानि शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पद्यांश में अनेक उदाहरणों के द्वारा प्रतिपादित किया गया है कि मित्रता समान चरित्र व स्वभाव वालों में ही होती है-

हिन्दी अनुवाद

मृग मृगों के साथ, गायें गायों के साथ, घोड़े घोड़ों के साथ, मूर्ख मूखों के साथ और विद्वान् विद्वानों के साथ ही पीछे-पीछे जाते हैं। मित्रता समान चरित्र व स्वभाव वालों में ही होती है।

English translation

The deer follow with the antelope, the cows with the cows, the horses with the horses, the fools with the fools, and the learned with the scholars. Friendship is only between people of similar character and nature.

(7) Class 10 Sanskrit Chapter 6 Hindi translation

सेवितव्यो महावृक्षः फलच्छायासमन्वितः।

यदि दैवात् फलं नास्ति छाया केन निवार्यते॥

अन्वय

फलच्छाया समन्वितः महावृक्षः सेवितव्यः। दैवात् यदि फलं नास्ति (वृक्षस्य) छाया केन निवार्यते।

कठिन शब्दार्थ

फलच्छायासमन्वितः = फल और छाया से युक्त (फलैः छाया च युक्तः)। महावृक्षः = विशाल वृक्ष (विशलतरुः)। सेवितव्यः = आश्रय लेना चाहिए (आश्रयितव्यः)। दैवात् = भाग्य से (भाग्यात्)। निवार्यते = रोका जाता है (निवारयति/अवरुध्यते)।

प्रसंग

प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक शेमुषी-द्वितीयो भागः के ‘Subhashitani शीर्षक पाठ से उद्धत किया गया है। इस पद्यांश में फल एवं छायादार वृक्ष का उदाहरण देते हुए कवि ने परोपकारी व्यक्ति के महत्त्व को दर्शाया है। कवि कहता है कि-

हिन्दी अनुवाद

फल और छाया से युक्त महान् वृक्ष का ही आश्रय लेना चाहिए। भाग्य से यदि उसमें फल नहीं हैं तो भी उस वृक्ष की छाया को कौन रोक सकता है? अर्थात् कोई नहीं।

          भाव यह है कि जिस प्रकार फल व छाया से युक्त वृक्ष का आश्रय लेने से यदि कदाचित् फल नहीं भी हो, तो भी वह छाया प्रदान करता ही है। उसी प्रकार परोपकारी व्यक्ति भी जो भी कुछ उसके पास है उससे वह दूसरों का भला करता ही है।

English translation

One should take shelter from a great tree with fruit and shade. By luck, even if there is no fruit in it, who can stop the shadow of that tree? That is, no one.

           The idea is that just as by taking shelter of a tree with fruit and shade, even if it may not produce fruit, it still provides shade. Similarly, a philanthropist also does good to others with whatever he has.

(8) Class 10 Sanskrit Chapter 6 Hindi translation

अमन्त्रमक्षरं नास्ति, नास्ति मूलमनौषधम्।

अयोग्यः पुरुषः नास्ति योजकस्तत्र दुर्लभः॥

अन्वय

अमन्त्रम् अक्षरं नास्ति, अनौषधम् मूलं नास्ति, अयोग्यः पुरुषः नास्ति, तत्र योजकः दुर्लभः।

कठिन शब्दार्थ

अमन्त्रम् = मन्त्रहीन (न मन्त्रम्/विवेकहीनम्)। अनौषधम् = बिना दवा, जड़ी-बूटी के (औषधीय गुणविहीनम्)। मूलम् = जड़ (आधारम्)। योजकः = जोड़ने वाला (समन्वयकः)।

प्रसंग

प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक शेमुषी-द्वितीयो भागः के सुभाषितानि शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पद्यांश में सभी को योग्य दर्शाते हुए उनकी योग्यता को काम में लेने वाले को दुर्लभ बतलाया गया है। कवि कहता है कि-

हिन्दी अनुवाद

मन्त्रहीन अक्षर नहीं है अर्थात् प्रत्येक अक्षर सार्थक होता है। बिना दवा (जड़ी-बूटी) के जड़ नहीं है अर्थात् प्रत्येक जड़ पदार्थ औषधि है। कोई भी पुरुष अयोग्य नहीं होता है किन्तु उसे सही जगह पर जोड़ने वाला दुर्लभ है।

            आशय यह है कि प्रत्येक अक्षर, जड़-पदार्थ, मनुष्य आदि उपयोगी होते हैं, किन्तु उनका सही उपयोग करने वाले दुर्लभ होते हैं।

English translation

There are no mantra-less letters, that is, every letter is meaningful. Without medicine (herb) there is no root, that is, every root substance is medicine. No man is incompetent but the one who connects him in the right place is rare.

             The meaning is that every letter, substance, human, etc. is useful, but those who use them properly are rare.

(9) Class 10 Sanskrit Chapter 6 Hindi translation

सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता।

उदये सविता रक्तो रक्तश्चास्तमये तथा॥

अन्वय

महताम् संपत्तौ विपत्तौ च एकरूपता भवति। (यथा)-सविता उदये रक्तः भवति, तथा अस्तमये च रक्तः भवति।

कठिन शब्दार्थ

महताम् = महापुरुषों की (महापुरुषाणाम्)। संपत्तौ = सम्पत्ति में (समृद्धौ)। विपत्तौ = विपत्ति आने पर (आपत्तौ)। एकरूपता = एक जैसा (समानम्) । सविता = सूर्य (सूर्यः)। उदये = उदय के समय (उदिते सति)। रक्तः = लाल (लोहितः)। अस्तमये = अस्त होने के समय (अस्तं गते)।

प्रसंग

प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक शेमुषी-द्वितीयो भागः के ‘Subhashitani शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पद्य में सूर्य का उदाहरण देते हुए महापुरुषों के वैशिष्ट्य को दर्शाया गया है। कवि कहता है कि-

हिन्दी अनुवाद

महापुरुषों की सम्पत्ति में और विपत्ति में एकरूपता रहती है। जैसे सूर्य उदय के समय रक्त (लाल) वर्ण का होता है, वैसे ही अस्त होने के समय में भी रक्त (लाल) वर्ण का ही होता है।

             आशय यह है कि महान् लोग सभी स्थितियों में एक समान ही रहते हैं। वे न तो संपत्ति के समय अधिक प्रसन्न होते हैं और न ही विपत्ति में घबराते हैं।

English translation

There is uniformity in the wealth of great men and in adversity. Just as the sun is of red (red) color at the time of rising, similarly the blood is off (red) color at the time of setting.

              The meaning is that great people remain the same in all situations. They are neither overjoyed in the time of wealth nor are they terrified of adversity.

(10) Class 10 Sanskrit Chapter 6 Hindi translation

विचित्रे खलु संसारे नास्ति किञ्चिन्निरर्थकम्।

अश्वश्चेद् धावने वीरः भारस्य वहने खरः॥

अन्वय

विचित्रे संसारे खलु किञ्चित् निरर्थकं नास्ति। अश्वः चेत् धावने वीरः, (तर्हि) भारस्य वहने खरः (वीरः) अस्ति।

कठिन शब्दार्थ

विचित्रे = अद्भुत (अद्भुते) । संसारे = संसार में (जगति, लोके)। खलु = निश्चित ही (अव्यय) (निश्चयमेव) । निरर्थकम् = अनुपयोगी (व्यर्थम्) । अश्वः = घोड़ा (तुरगः)। चेत् = यदि (यदि)। धावने = दौड़ने में (धावनकलायाम्)। वहने = वहन करने में (वोढुम्)। खरः = गधा (गर्दभः)।

प्रसंग

प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक शेमुषी-द्वितीयो भागः के सुभाषितानि शीर्षक पाठ से उद्भुत किया गया है। इस पद्यांश में संसार में सभी की सार्थकता को सिद्ध करते हुए कहा गया है कि-

हिन्दी अनुवाद

इस विचित्र संसार में निश्चय ही कुछ भी निरर्थक नहीं है। यदि घोड़ा दौड़ने में वीर  है तो भार का वहन करने में गधा भी वीर है। अर्थात् संसार में सबका अपना-अपना महत्व है, कोई भी व्यर्थ की वस्तु नहीं है।

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