Varn in Hindi वर्ण-विचार क्या है? परिभाषा, भेद और उदाहरण

In this post we will share Varn in Hindi वर्ण for class 9 students.

भाषा की वह छोटी से छोटी इकाई जिसके टुकड़े नहीं किए जा सकते हों, वर्ण कहलाते हैं, जैसे एक शब्द है-पीला।

पीला शब्द के यदि टुकड़े किए जाएँ तो वे होंगे– पी + ला। अब यदि पी और ला के भी टुकड़े किए जाएँ तो होंगे-प्‌ + ई तथा ल + आ

अब यदि प्‌ ई, ल आ के भी हम टुकड़े करना चाहें तो यह संभव नहीं है। अत: ये ध्वनियाँ वर्ण कहलाती हैं। ये ध्वनियाँ दो ही प्रकार की होती हैं-स्वर तथा व्यंजन

वर्णों के मेल से शब्द बनते हैं, शब्दों के मेल से वाक्य तथा वाक्यों के मेल से भाषा बनती है। अत: वर्ण ही भाषा का मूल आधार है।

हिंदी में वर्णों की संख्या 44 है। मुँह से उच्चरित होनेवाली ध्वनियों और लिखे जानेवाले इन लिपि चिहनों (वर्णों) को दो भागों में बांटा जाता है-

1. स्वर 2. व्यंजन

स्वर- जो वर्ण बिना किसी दूसरे वर्ण (स्वर) की सहायता के बोले जा सकते हैं वे स्वर कहलाते
हैं। ये ग्यारह () हैं

ये सभी ध्वनियाँ ऐसी हैं जिनका उच्चारण बिना दूसरी ध्वनि के ही किया जाता है। अ, इ, मूल स्वर हैं। ये हस्व स्वर हैं क्योंकि इनके उच्चारण में दीर्घ स्वरों से कम समय लगता है। का हिंदी में शुद्ध प्रयोग नहीं होने के कारण रि (र्‌ + ३) के उच्चारण के रूप मे प्रयुक्त होने लगा है। केवल ऋतु, ऋषि, ऋण आदि कुछ शब्दों के लेखन में ही इसका प्रयोग मिलता है इसका उच्चारण रि (र+ ३) होता है।


स्वर के भेद

1.हस्व

2. दीर्घ

हस्व स्वर-जिन स्वरों के उच्चारण में अपेक्षाकृत कम समय लगता है, वे हस्व स्वर कहलाते हैं। ये तीन हैं-अ, इ, उ, ऋ

दीर्घ स्वर-जिन स्वरों के उच्चारण में मूल स्वरों से दुगुना समय लगता है, वे दीर्घ स्वर कहलाते हैं। ये सात हैं-आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।

अँगरेजी के ऑ स्वर का भी प्रयोग हिंदी में होने लगा है, जैसे-डॉक्टर, कॉलेज

व्यंजन

जो वर्ण स्वरों की सहायता से बोले जाते हैं वे व्यंजन कहलाते हैं। मूल रूप से व्यंजन स्वर रहित होते हैं।

व्यंजन के उच्चारण में फेफड़ों से निकलने वाली साँस मुख के किसी अवयव (उच्चारण स्थान)से बाधित होती है। जब हम किसी वर्ण का उच्चारण करते हैं तो वह किसी स्वर की सहायता से ही उच्चरित होगा। जैसे-प का उच्चारण करने पर प्‌ + अ की सहायता से उच्चरित होगा।

हलू-चिहन ( _ ) व्यंजन के स्वर रहित होने का परिचायक है। स्वर-रहित व्यंजन के साथ हल्‌ का चिहन लगाया जाता है या फिर खड़ी पाई वाले व्यंजन चिहनों की खड़ी पाई हटा दी जाती है। उसके अर्द्ध रूप का प्रयोग किया जाता है। जैसे-अपराहन, पाठ्य, विद्या, पट्टा आदि।

हिंदी व्यंजन निम्नानुसार हैं-  क् ख् ग् घ् ङ च् छ् ज् झ् ञ् ट् ठ् ड् ढ् ण्  त् थ् द् ध् न् प् फ् ब् भ् म्

स्वर-युक्त व्यंजन व उनका वर्गीकरण-

( अ) उच्चारण स्थान के आधार पर-

वर्गव्यंजनउच्चारण स्थाननाम ध्वनि
क वर्ग अ आ क ख ग घ ड़ तथा विसर्ग-ह कंठ्
कंठ्य
च वर्गइ ई च छ ज झ ज य शतालुतालव्य
ट वर्गट ठ ड ढ ण ड़ ढ़ ऋ ष रमूर्दधामूर्दन्य
त वर्ग त थ द ध न लदाँतद्न्त्य
प वर्गप फ ब भ म उ ऊओष्ठओष्ठ्य
ए ऐकंठ व तालुकंद्य-तालव्य
ब दाँत वदाँत व ओष्ठ.दन्तोष्ठ्य
ओ औकंठ व ओष्ठकंठोष्ठ्य

नासिक्य व्यंजन-ड, ज, ण, न, म इनका उच्चारण नासिका के साथ क्रमश: कंठ, तालु, मूर्द्धा दाँत तथा ओष्ठ के स्पर्श से होता है अत: इन्हें नासिक्य व्यंजन कहते हैं।

अंतस्थ व्यंजन-य, र, ल, व

ऊष्म व्यंजन – श ष स ह-इन वर्णों का उच्चारण, उच्चारण स्थान के साथ प्रश्वास वायु (छोड़ने वाली साँस) के घर्षण से होता है। हमारी जीभ “श’ का उच्चारण करते समय तालु से, ‘ष’ का उच्चारण करते समय मूर्द्धा से तथा “स’ का उच्चारण करते समय दाँतों से घर्षण करती है।

संयुक्ताक्षर-‘क्ष‘, ‘त्र‘, ‘ज्ञ‘ तथा “श्र” संयुक्त व्यंजन हैं-

इनका विस्तार अथवा आक्षरिक खंड निम्न प्रकार है-

कु +ष्‌ + अ = न्क्ष


त्‌ू + र्‌ + अ =त्त्

जू + ज्‌ु + अ= न्न्ज्ञ

शू + र + अ = न्श्र

हिंदी में *ज्ञ’ का उच्चारण “ग्य’ होता है इसलिए इसका विस्तार गू +यू + अ >ज्ञ की तरह भी अब होने लगा है।




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